BA Semester-3 Defence and Strategic Studies - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2648
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

अध्याय - 5

शक्ति का सन्तुलन, सामूहिक सुरक्षा, सामूहिक रक्षा, गुट निरपेक्षता, प्रतिरोध, निशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियन्त्रण

(Balance of Power, Collective Security, Collective Defence, Non-Alignment, Deterrence, Disarmament and Arms Control)

 

प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।

अथवा
सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? सामूहिक सुरक्षा की सैद्धान्तिक मान्यताएँ वर्णित कीजिए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा के एक वैकल्पिक नमूने के रूप में सामूहिक सुरक्षा की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सामूहिक सुरक्षा व निःशस्त्रीकरण का मूल उद्देश्य लिखिए।

उत्तर -

सामूहिक सुरक्षा
(Collective Security )

सामूहिक सुरक्षा का अर्थ इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है विभिन्न देशों के द्वारा सामूहिक रूप से सुरक्षा का प्रबन्ध करना। इसके अर्थ को स्पष्ट करते हुए जॉन स्वर्जेन बर्गर ने कहा है कि "सामूहिक सुरक्षा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विरुद्ध आक्रमण रोकने या प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए किये गये सम्मिलित कार्यों की मशीनरी है। वैसे तो सुरक्षा के अनेकों अर्थ हो सकते हैं किन्तु सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत किसी एक राज्य पर आक्रमण विश्व के सभी राज्यों के विरुद्ध आक्रमण माना जायेगा। सामूहिक शब्द में समूह का बोध होता है इसलिए स्पष्ट है कि सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत कई राष्ट्रों का समूह होता है जो मिलकर आक्रमण का प्रतिकार करता है। इस अर्थ में मार्गेनथाऊ के शब्दों में "एक सब के लिए और सब एक के लिए।' अथवा दूसरे शब्दों में सामूहिक सुरक्षा उसी सिद्धान्त का अन्तर्राष्ट्रीय समाज के क्षेत्र में एक विस्तृत रूप है।

वास्तव में सामूहिक सुरक्षा से हमारा अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को खतरे में डालने वाले राष्ट्र के विरुद्ध सभी राष्ट्र सामूहिक रूप से कार्यवाही करेंगे।

समय-समय पर साम्राज्यवादी, महत्वाकांक्षी एवं युद्धप्रिय देशों द्वारा विश्व शान्ति को चुनौती दी जाती रही है। इन चुनौतियों को रोकने के लिए सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था ही कारगर सिद्ध होता है। इसी प्रकार विद्वानों का मत है कि सामूहिक सुरक्षा के बदले अन्य कोई व्यवस्था नहीं है जो इन चुनौतियों का सामना कर सके।

सामूहिक सुरक्षा को शान्ति का एक मार्ग भी माना जाता है अतः आक्रमण कहीं भी हो सुरक्षा सभी राष्ट्रों की चिन्ता का विषय है। इस प्रकार सामूहिक सुरक्षा का जन्म युद्ध और शान्ति की समस्याओं से निपटाने का एक प्रयत्न है जिसमें घरेलू राजनीति में बल प्रयोग करने के सिद्धान्त का विस्तार और शक्ति सन्तुलन के दायरे का प्रसार किया गया है। सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त यह मानकर चलता है कि युद्ध सदैव से होते आये हैं और होते रहेंगे। सामूहिक सुरक्षा के लिए अपेक्षित सहयोग सब राष्ट्रों के बीच होना चाहिए और यह बात किसी न किसी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के माध्यम से हो सकती है। इसी आधार पर महाशक्तियों ने कुछ सैन्य संगठनों का गठन क्षेत्रीय एवं अन्य आधारों पर किया है जो निम्नलिखित हैं- (i) NATO, (ii) SEATO, (iii) CENTO, (iv) SAARC, (v) ASEAN, (vi) G-15, (vii) OAU, (viii) GCC इत्यादि।

इस प्रकार संक्षेप में सामूहिक सुरक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं -

1. सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत किसी एक राष्ट्र पर किया गया आक्रमण सभी राष्ट्रों के विरुद्ध आक्रमण माना जायेगा।
2. किसी राष्ट्र विशेष की सुरक्षा सिर्फ उसी राष्ट्र की चिन्ता का विषय नहीं है, बल्कि वह सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय समाज की चिन्ता का विषय होगा।
3. यदि किसी राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है तो खतराग्रस्त राष्ट्र की ओर से बाकी सभी राष्ट्र मिलकर कार्यवाही करेंगे।

आक्रमणकारी राष्ट्र के अलावा और सभी राष्ट्रों के मध्य सहयोग सामूहिक सुरक्षा का सारतत्व है। सम्भवतः इस सहयोग के डर से आक्रमणकारी राष्ट्र आक्रमण का विचार छोड़ दे। -

सामूहिक सुरक्षा में अन्तर्निहित मान्यताएँ

सामूहिक सुरक्षा का विचार निम्नलिखित पाँच मान्यताओं पर आधारित है -

1. आक्रमण को रोकने में सभी राष्ट्रों की रुचि - सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त के अन्तर्गत सभी राष्ट्रों की आक्रमणकारी राष्ट्र के विरुद्ध कार्यवाही करने में समान रुचि होती है। परन्तु आज भी कुछ ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो इस सिद्धान्त के विपरीत कार्य करते हैं।

2. सभी राष्ट्र अक्रान्ता को पहचानते हैं - अन्तर्राष्ट्रीय विवाद में राष्ट्रों के मध्य कभी भी इस प्रश्न पर एक विचार नहीं हो सकता है कि अक्रान्ता कौन राष्ट्र है। अक्रान्ता राष्ट्र को पहचानते हुए भी अक्रान्ता घोषित नहीं कर सकते। उदाहरणार्थ; 1965, 1971 में भारत पर सर्वप्रथम पाकिस्तान ने आक्रमण और कारगिल में घुसपैठियों को भेजा। सभी इस बात को जानते हैं परन्तु फिर भी संयुक्त राष्ट्र संघ में इस प्रश्न पर सभी राष्ट्रों में मतभेद हैं। ऐसी स्थिति में सामूहिक सुरक्षा पद्धति के अन्तर्गत किसी भी राष्ट्र को उस समय तक अपराधी नहीं मान सकते जब तक वह अपराधी साबित न हो पाये।

3. सभी राष्ट्रों में आक्रमण का प्रतिकार करने की क्षमता - यह सामूहिक सुरक्षा का तीसरा सिद्धान्त है। कभी-कभी ऐसा देखा गया है कि किसी राष्ट्र के विरुद्ध संयुक्त कार्यवाही करने में उस राष्ट्र के पड़ोस का छोटा राष्ट्र इस संयुक्त आक्रमणात्मक कार्यवाही में भाग लेने का निर्णय नहीं कर पाता है क्योंकि उसे यह डर होता है कि ऐसी स्थिति में उसकी भूमि का प्रयोग उक्त राष्ट्र के विरुद्ध किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में ऐसे राष्ट्रों से संयुक्त कार्यवाही में भाग लेने की आशा नहीं की जा सकती है।

4. आक्रमणकारी राष्ट्र की अपेक्षा समग्र की शक्ति का अधिक होना - सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त की चौथी मान्यता यह है कि सभी राष्ट्र मिलकर आक्रमणकारी राष्ट्र के हमले का मुँहतोड़ जवाब दे सकते हैं, क्योंकि अकेला राष्ट्र विश्व के सभी शक्तिशाली राष्ट्रों का सामना नहीं कर सकता।

5. विश्व शान्ति शक्ति की अधिकता पर आश्रित - पहले सामूहिक सुरक्षा की अन्तिम मान्यता यह थी कि शक्ति की अधिकता से ही विश्व शान्ति की स्थापना की जा सकती है, परन्तु अब विश्व शान्ति की अधिकता से हटकर शक्ति सन्तुलन पर आश्रित हो गई है।

प्रादेशिक संगठन और सामूहिक सुरक्षा
(Regional Arrangement and Collective Security)

सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से विभिन्न प्रादेशिक या क्षेत्रीय संगठनों की स्थापना की गयी है। इन संगठनों के निर्माण का उद्देश्य उस संगठन के राष्ट्रों की सुरक्षा व्यवस्था तथा अन्य व्यवस्था करना है। प्रायः इन संगठनों को सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया जा रहा है, किन्तु यह संगठन सामूहिक सुरक्षा में तो सहायक सिद्ध हुए हैं किन्तु इन संगठनों से गुटबन्दी का जन्म हुआ है जिससे विश्व शान्ति का खतरा उत्पन्न हो गया है। इन संगठनों के निर्माण से शीतयुद्ध शुरू हो गये हैं जो आगे चलकर वास्तविक युद्ध में बदल सकते हैं और इस तरह से तृतीय विश्व की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। फलतः इन संगठनों से विश्व शान्ति व सामूहिक सुरक्षा की समस्या और अधिक उलझ गई है।

सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन
(Collective Security and Balance of Power)

क्लॉड के अनुसार सामूहिक सुरक्षा शक्ति व्यवस्थापन की दृष्टि से शक्ति सन्तुलन की तुलना में एक अधिक केन्द्रीकृत प्रबन्ध है। इसमें शक्ति सन्तुलन की तुलना में शक्ति का नियन्त्रण अधिक होता है। जबकि क्विंसी राइट का मत है कि "शक्ति सन्तुलन तथा सामूहिक सुरक्षा के बीच सम्बन्ध एक ही साथ एक-दूसरे के पूरक तथा विरोधी रहे हैं और सामूहिक सुरक्षा को शान्ति सन्तुलन पर आधारित होना चाहिए। इसलिये सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा को 'शक्ति- सन्तुलन' सिद्धान्त का विकल्प माना जाता हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना भी इसी उद्देश्य से की गई थी कि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था शक्ति सन्तुलन का अन्त करके उसका स्थान प्राप्त कर लेगी वैसे सिद्धान्ततः सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन एक-दूसरे के विरोधी हैं क्योंकि सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था नकारात्मक है तथा शक्ति सन्तुलन की व्यवस्था सकारात्मक है। सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा सामान्य सहयोग के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करती है, जबकि शक्ति सन्तुलन का सिद्धान्त गुटबन्दी के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करता है।

सामूहिक सुरक्षा और निःशस्त्रीकरण
(Collective Security and Disarmament)

विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए सामूहिक सुरक्षा और निःशस्त्रीकरण दो अलग-अलग रास्ते हैं। सामूहिक सुरक्षा के अन्तर्गत निःशस्त्रीकरण पर बल दिया गया है किन्तु ऐसा प्रयास पूर्णतः विफल रहा है और विश्व शान्ति के नाम पर शस्त्रीकरण होता ही जा रहा है। विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए सभी राष्ट्र तथा संगठन निःशस्त्रीकरण का प्रचार करते रहते हैं, किन्तु यह प्रचार पूर्णतः निरर्थक साबित हो रहे हैं, क्योंकि बिना शस्त्रों का राष्ट्र होना सम्भव नहीं है, यदि भविष्य में ऐसा हुआ भी तो फौरन ही शक्तिशाली राष्ट्र अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए उस राष्ट्र को अपने अधीन करने के लिए आक्रमण कर देंगे और इस प्रकार विश्व शान्ति के सभी प्रयास विफल हो जायेंगे।

सामूहिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र संघ
(Collective Security and U.N.O.)

संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण विश्व शान्ति एवं सुरक्षा के उद्देश्य से किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की पहली धारा में शान्ति के लिए खतरों को रोकने तथा उन्हें दूर करने हेतु और आक्रामक कार्यों तथा शान्ति के अन्य उल्लंघनों का दमन करने के लिए प्रभावशाली सामूहिक उपायों पर जोर दिया गया है। विश्व शान्ति और सामूहिक सुरक्षा में संयुक्त राष्ट्र संघ का बहुत बड़ा हाथ है। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा अब तक कई युद्धों को टाला जा चुका है, जैसे - अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमला संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की 43वीं धारा में यह व्यवस्था की गयी है कि "संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य सुरक्षा परिषद को उसके आह्वान पर अथवा उसके साथ किये गये विशिष्ट समझौतों के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को कायम रखने के लिए आवश्यक सैनिक सहायता तथा सुविधाएँ उपलब्ध कराने का वचन देते हैं। इसी प्रकार अनुच्छेद 52 में सदस्य राष्ट्रों को क्षेत्रीय आधार पर सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए सैनिक सन्धियाँ करने का अधिकार दिया गया है। इसी आधार पर महाशक्तियों ने कुछ सैन्य संगठनों का गठन क्षेत्रीय व प्रादेशिक आधार पर किया है।

इन सबके अतिरिक्त विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए कुछ अन्य धारणाएँ भी हैं जैसे कुछ लोग विश्व शान्ति के लिए विश्व सरकार की स्थापना पर बल देते हैं जोकि संभव नहीं है। इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा विश्व शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना की धारणा की जाती है। राष्ट्र संघ की विफलता के बाद यह धारणा भी फीकी पड़ गयी किन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस धारणा को बल दिया और बहुत हद तक विश्व शान्ति एवं सुरक्षा में सहयोग प्रदान किया।

मूल्याँकन - सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का अध्ययन करने के बाद हम यह कह सकते हैं कि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का अभी पूर्ण रूप से प्रभावकारी विकास नहीं हुआ है। जार्ज श्वार्जन बर्गर ने लिखा है कि "जब तक पूर्वी और पश्चिमी संसार एक-दूसरे को संभावित आक्रामक समझना छोड़ नहीं देते तब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में निहित सामूहिक सुरक्षा को कार्यरूप में नहीं लाया जा सकता है।' बाल्टर लिपमैन ने सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त को अपना समर्थन नहीं दिया है और इसे व्यवहारिक बताया है। इन परिभाषाओं और तर्क के आधार पर यह कह सकते हैं कि सामूहिक सुरक्षा की एकता में ही शक्ति है और सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था किसी भी रूप में व किसी भी आधार में हो, लेकिन वह तब तक प्रभावी नहीं हो सकती, जब तक उसे क्रियान्वित करने के लिए पर्याप्त शक्ति न जुटा ली जाये। क्योंकि शान्ति के बगैर किसी भी आक्रमणकारी को नहीं रोका जा सकता।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  2. प्रश्न- राष्ट्र राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  3. प्रश्न- राष्ट्र राज्य से आप क्या समझते हैं?
  4. प्रश्न- राष्ट्र और राज्य में क्या अन्तर है?
  5. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए तथा सुरक्षा के आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित करते हुए सुरक्षा के निर्धारक तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। राष्ट्रीय हित में सुरक्षा क्यों आवश्यक है? विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए।
  9. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सामाजिक समरसता का क्या महत्व है?
  11. प्रश्न- भारत के प्रमुख असैन्य खतरे कौन से हैं?
  12. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति को उसके स्थल एवं जल सीमान्तों के सन्दर्भ में बताइये।
  13. प्रश्न- प्रतिरक्षा नीति तथा विदेश नीति में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  14. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा का विश्लेषणात्मक महत्व बताइये।
  15. प्रश्न- रक्षा नीति को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्वों के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा सुरक्षा नीति से आप क्या समझते है?
  17. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति का वर्णन कीजिये।
  18. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित करते हुए शक्ति की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  19. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति की रूपरेखा बताइये।
  20. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित कीजिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  22. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों का परीक्षण कीजिये।
  23. प्रश्न- "एक राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन उसकी शक्ति निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व है।' इस कथन की व्याख्या भारत के सन्दर्भ में कीजिए।
  24. प्रश्न- "किसी देश की विदेश नीति उसकी आन्तरिक नीति का ही प्रसार है।' इस कथन के सन्दर्भ में भारत की विदेश नीति को समझाइये।
  25. प्रश्न- भारतीय विदेश नीति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  26. प्रश्न- कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  27. प्रश्न- कूटनीति का क्या अर्थ है? बताइये।
  28. प्रश्न- कूटनीति और विदेश नीति का सह-सम्बन्ध बताइये।
  29. प्रश्न- 'शक्ति की अवधारणा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति पर मार्गेनथाऊ के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के आर्थिक तत्व का सैनिक दृष्टि से क्या महत्व है?
  32. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति बढ़ाने में जनता का सहयोग अति आवश्यक है। समझाइये।
  33. प्रश्न- विदेश नीति को परिभाषित कीजिये तथा विदेश नीति रक्षा नीति के सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शीत युद्ध के बाद के अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण पर एक निबन्ध लिखिये।
  36. प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  37. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये -(i) सुरक्षा परिषद् (Security Council), (ii) वारसा पैक्ट (Warsa Pact), (iii) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), (iv) दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन (SEATO), (v) केन्द्रीय संधि संगठन (CENTO), (vi) आसियान (ASEAN)
  38. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा इनके लाभ पर प्रकाश डालिए?
  39. प्रश्न- क्या संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में शान्ति स्थापित करने में सफल हुआ है? समालोचना कीजिए।
  40. प्रश्न- सार्क पर एक निबन्ध लिखिए।
  41. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन के विभिन्न रूपों तथा उद्देश्यों का वर्णन करते हुए इसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित करते हुए उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा की व्याख्या कीजिये।
  44. प्रश्न- 'क्षेत्रीय सन्धियों' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  45. प्रश्न- समूह 15 ( G-15) क्या है?
  46. प्रश्न- स्थाई (Permanent) तटस्थता तथा सद्भावनापूर्ण (Benevalent) तटस्थता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- नाटो (NATO) क्या है?
  48. प्रश्न- सीटो (SEATO) के उद्देश्य क्या हैं?
  49. प्रश्न- सार्क (SAARC) क्या है?
  50. प्रश्न- दक्षेस (SAARC) की उपयोगिता को संक्षेप में समझाइए।
  51. प्रश्न- “सामूहिक सुरक्षा शांति स्थापित करने का प्रयास है।" स्पष्ट कीजिये।
  52. प्रश्न- 'आसियान' क्या है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) तथा तटस्थता (Neutrality) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन को एक नीति के रूप में समझाइये।
  55. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र संघ पर एक टिप्पणी कीजिए।
  56. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित कीजिये।
  57. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण और आयुध नियंत्रण में क्या अन्तर है?
  58. प्रश्न- शस्त्र नियंत्रण और निःशस्त्रीकरण में क्या सम्बन्ध है?
  59. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आन्तरिक व बाह्य खतरों की व्याख्या कीजिये।
  60. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्तर्गत भारत को अपने पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान तथा चीन से सम्बन्धित खतरों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- 'चीन-पाकिस्तान धुरी एवं भारतीय सुरक्षा' पर एक निबन्ध लिखिए।
  62. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व एवं अर्थ की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गैर-सैन्य खतरों से आप क्या समझते हैं? उनसे किसी राष्ट्र को क्या खतरे हो सकते हैं?
  65. प्रश्न- देश की आन्तरिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्तमान समय में भारतीय आन्तरिक सुरक्षा के लिए मुख्य खतरों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- भारत की आन्तरिक सुरक्षा हेतु चुनौतियाँ कौन-कौन सी है? वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- रक्षा की अवधारणा बताइए।
  68. प्रश्न- खतरे की धारणा से आप क्या समझते हैं? भारत की सुरक्षा के खतरों की समीक्षा कीजिए।
  69. प्रश्न- राष्ट्र की रक्षा योजना क्या है और इसकी सफलता कैसे निर्धारित होती है?
  70. प्रश्न- "एक सुदृढ़ सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिये।
  71. प्रश्न- भारत के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए विकसित प्रक्षेपास्त्रों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  72. प्रश्न- पाकिस्तान की आणविक नीति का भारत की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिये।
  73. प्रश्न- चीन के प्रक्षेपात्र कार्यक्रमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- चीन की परमाणु क्षमता के बारे में बताइए।
  75. प्रश्न- भारतीय मिसाइल कार्यक्रम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  76. प्रश्न- भारत की नाभिकीय नीति का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
  77. प्रश्न- भारत के लिये नाभिकीय शक्ति (Nuclear Powers ) की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिये।
  78. प्रश्न- पाकिस्तान की परमाणु नीति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- पाकिस्तान की मिसाइल क्षमता की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- क्या हथियारों की होड़ ने विश्व को अशान्त बनाया है? इसकी समीक्षा कीजिए।
  81. प्रश्न- N. P. T. पर बड़ी शक्तियों के दोहरी नीति की व्याख्या कीजिए।
  82. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि (CTBT) के सैद्धान्तिक रूप की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- MTCR से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- राष्ट्रीय मिसाइल रक्षा (NMD) से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- परमाणु प्रसार निषेध संधि (N. P. T.) के अर्थ को समझाइए एवं इसका मूल उद्देश्य क्या है?
  86. प्रश्न- FMCT क्या है? इस पर भारत के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- शस्त्र व्यापार तथा शस्त्र सहायता में क्या सम्बन्ध है? बड़े राष्ट्रों की भूमिका क्या है? समझाइये |
  88. प्रश्न- छोटे शस्त्रों के प्रसार से आप क्या समझते हैं? इनके लाभ व हानि बताइये।
  89. प्रश्न- शस्त्र दौड़ से आप क्या समझते हैं?
  90. प्रश्न- शस्त्र सहायता तथा व्यापार कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  91. प्रश्न- शस्त्र व्यापार करने वाले मुख्य राष्ट्रों के नाम बताइये।
  92. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये वाह्य व आन्तरिक चुनौतियाँ क्या हैं? उनसे निपटने के उपाय बताइये।
  93. प्रश्न- भारत की सुरक्षा चुनौती को ध्यान में रखते हुए विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति की समीक्षा कीजिए।
  94. प्रश्न- भारत में अनुसंधान तथा विकास कार्य (Research and Development) पर प्रकाश डालिए तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठनों का भी उल्लेख कीजिए।
  95. प्रश्न- "भारतीय सैन्य क्षमता को शक्तिशाली बनाने में रक्षा उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।' उपरोक्त सन्दर्भ में भारत के प्रमुख रक्षा उद्योगों के विकास का उल्लेख कीजिए।
  96. प्रश्न- नाभिकीय और अंतरिक्ष कार्यक्रम के विशेष सन्दर्भ में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
  97. प्रश्न- "एक स्वस्थ्य सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  99. प्रश्न- भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए

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